Wednesday, September 2, 2009

Dipak 'Mashal' ki 3 rachnayen

1-

क्या खूब पायी थी उसने अदा,
ख्वाब तोड़े कई आंधिओं की तरह.
कतरे गए कई परिंदों के पर,
सबको खेला था वो बाजियों की तरह.
हौसला नाम से रब के देता रहा,
औ फैसला कर गया काजिओं की तरह.
ख़ास बनने के ख्वाब खूब बेंचे मगर,
करके छोडा हमें हाशिओं की तरह.
साहिलों को मिलाने की जुंबिश तो थी,
खुद का साहिल न था माझिओं की तरह.
जिनको दिल से लगा 'मशाल' शायर बना,
है अब लगाता उन्हें काफिओं की तरह.
दीपक 'मशाल'

2-
धुँआ-धुँआ सा नज़र आया सब,
उसने मुझको था ठुकराया जब.
इतना बेबस के जैसे खूँ ही नहीं,
गिरे बदन को जमीं से उठाया जब.
सब अधूरा सा नज़र आया था,
चाँद कोरा सा ख्वाब लाया जब.
रंग फूलों का हो गया काफुर,
कितना फीका सा शफक छाया तब.
दीपक 'मशाल'

3-
लो यहाँ इक बार फिर, बादल कोई बरसा नहीं,
तपती जमीं का दिल यहाँ, इसबार भी हरषा नहीं.
उड़ते हुए बादल के टुकड़े, से मैंने पूछा यही,
क्या हुआ क्यों फिर से तू, इस हाल पे पिघला नहीं.
तेरी वजह से फिर कई, फांसी गले लगायेंगे,
अनाथ बच्चे भूख से, फिर पेट को दबायेंगे.
माँ जिसे कहते हैं वो, खेत बेचे जायेंगे,
मजबूरियों से तन कई, बाज़ार में आ जायेंगे.
फिर रोटियों के चोर कितने, भूखे पीटे जायेंगे,
फिर कई मासूम बचपन, पल में जवां हो जायेंगे.
दीपक 'मशाल'

महत्वपूर्ण सूचना- ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, बस जाने से पहले एक गुजारिश है साहब की- 'कुछ तो कहते जाइये जो याद आप हमको भी रहें, अच्छा नहीं तो बुरा सही पर कुछ तो लिखते जाइये। (टिप्पणी)

3 comments:

  1. बहुत उम्दा रचनाऐं..आभार इन्हें प्रस्तुत करने का.

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  2. खूबसूरत भाव की रचनाएँ दीपक जी।

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  3. bahut baddhiya rachnaye. sundar. dhanyavaad.

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